History of hp new 2022


Brief History of Hamirpur  district (HP) हमीरपुर  जिले का
  संक्षिप्त इतिहास -------------


हमीरपुर जिले का जिले के रूप में गठन 1 सितम्बर,1972 को हुआ था . और इसका जिला मुख्यालय हमीरपुर है।
हमीरपुर का कुल क्षेत्रफल 1118 वर्ग किलोमीटर है | हमीरपुर हिमाचल प्रदेश के पश्चिम भाग में स्थित है |
हमीरपुर जिले के उत्तरपूर्व और पूर्व में मंडी, पश्चिम और दक्षिण पश्चिम में ऊना, उत्तर में काँगड़ा तथा दक्षिण में
बिलासपुर जिले की सीमाएं लगती है |  हमीरपुर की समुद्रतल से ऊंचाई 786 मीटर है |

इतिहास 

  1. हमीरपुर की स्थापना - 1700 ई० में आलमचंद की मृत्यु के बाद हमीरचंद काँगड़ा के शासक बने | उस समय कांगा जिला मुगलों के अधीन था | हमीरचंद ने 1700 ई० से लेकर 1747 ई० तक काँगड़ा रियासत पर शासन किया | हमीरचंद ने 1743 ई० में जिस स्थान पर किले का निर्माण किया वही स्थान कालांतर में हमीरपुर कहलाया | हमीरपुर किले को 1884 ई० में तहसील कार्यालयबनाया गया | इस प्रकार हमीरपुर को नादौन के स्थान पर 1868 ई० में तहसील मुख्यालय बनाया गया | 
  2. सुजानपुर टिहरा - 1748 ई० में काँगड़ा के राजा अभयचन्द ने सुजानपुर की पहाड़ियों पर दुर्ग और महल बनवाए जो तिहरा के नाम से प्रसिद्ध हुए | सुजानपुर शहर की स्थपना घमन्डचंद ने की | घमन्डचंद ने ई० में सुजानपुर में चामुंडा मंदिर का निर्माण करवाया | काँगड़ा के राजा संसारचंद ने सुजानपुर टिहरा को अपनी राजधानी बनाया | राजा संसारचंद ने संसारचंद ने 1793 ई० में सुजानपुर में गौरी शंकर  निर्माण करवाया | सुजानपुर का नर्वदेश्वर मंदिर 1823 ई० में संसारचंद द्वारा बनाया गया | राजा संसारचंद ने सुजानपुर तिहरा में ब्रज जैसी होली का त्यौहार शुरू करवाया | सुजानपुर टिहरा में हिमाचल प्रदेश का एकमात्र सैनिक स्कुल स्थित है | सुजानपुर टिहरा में हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा खेल मैदान है
  3. नादौन - नादौन शहर ब्यास नदी के किनारे बसा है | इस स्थान पर 1687 ई० में गुरुगोबिंद सिंह और बिलासपुर के राजा भीमचंद ने मुगलों को हराया था | यह युद्ध नादौन युद्ध  प्रसिद्ध है | काँगड़ा के राजा संसारचंद ने नादौन के पास अमतर को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था | संसारचंद ने नादौन के बारे में कहा था "आएगा नादौन जाएगा कौन" | राजा संसारचंद ने मंडी के राजा ईष्वरी सेन को 12 वर्षों तक नादौन जेल में कैद रखा जिसे बाद में गोरखाओं ने छुड़वाया | मूरक्राफ्ट ने 1820ई० में नादौन की यात्रा की |  नादौन को 1846 ई० में तहसील मुख्यालय बनाया गया | यशपाल साहित्य प्रतिष्ठान की स्थापना 2000 ई० में नादौन में की गई
  4. महालमोरियो - हमीरपुर के महालमोरियो  में 1806 ई० में गोरखों ने महाराजा संसारचंद को हराया जिसके बाद संसारचंद को काँगड़ा किले में शरण लेनी पडी | हमीरपुर 1806 ई० से 1846 ई० तक सिक्खों के नियंत्रण में था | 1846  ई० में हमीरपुर अंग्रेजों के अधीन आ गया | 
  5. भूम्पल - साहित्यकार यशपाल का जन्म भूम्पल में हुआ | यशपाल 1918 ई० में स्वाधीनता संग्राम में कूदे थे | 
  6. विक्टोरिया क्रॉस - हमीरपुर के लांस नायक लाला राम को प्रथम विश्वयुद्ध में अदभ्य साहस के लिए विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया गया | विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करने वाले पहले हिमाचली थे
जिले का निर्माण - हमीरपुर जिला 1966  ई० से पूर्व पंजाब का हिस्सा था | हमीरपुर काँगड़ा जिले की तहसील के रूप में 1966  ई० में हिमाचल प्रदेश में मिलाया गया | हमीरपुर को 1 सितम्बर, 1972 ई० को काँगड़ा से अलग कर जिला बनाया गया | हमीरपुर जिला बनाने से पूर्व (1972  ई०) काँगड़ा जिले का उपमंडल था | हमीरपुर और बड़सर 2 तहसीलो से हमीरपुर जिले का गठन किया गया | वर्ष 1980 ई० में सुजानपुर टिहरा, नादौन और भोरंज तहसील का गठन किया गया |

Brief History of Lahaul Spiti district (HP) लाहौल स्पीति जिले संक्षिप्त इतिहास -------------

जिले के रूप में गठन 01 नवंबर,1966. जिला मुख्यालय केलांग है | लाहौल स्पीति का कुल क्षेत्रफल 13,528 (2011) है | लाहौल स्पीति हिमाचल प्रदेश के उत्तर भाग में स्थित है | लाहौल स्पीति के उत्तर में जम्मू कश्मीर, पूर्व में तिब्बत, दक्षिण-पूर्व में किनौर, दक्षिण में कुल्लू, पश्चिम में चम्बा और दक्षिण पश्चिम में काँगड़ा जिला स्थित है | 

  • दर्रे

  1.  रोहतांग दर्रा - रोहतांग दर्रा लाहौल को कुल्लू से जोड़ता है | यह राष्ट्रीय राजमार्ग -२१ पर स्थित है | रोहतांग का अर्थ है - लाशों का ढेर | 
  2. भंगाल दर्रा - लाहौल और बड़ा भंगाल के बीच में स्थित है |  
  3. शिंगडकोन दर्रा - लाहौल और जास्कर के बीच स्थित है | 
  4. कुंजुम दर्रा - लाहौल और स्पीति को जोड़ता है | 
  5. कुगति दर्रा - लाहौल को भरमौर से जोड़ता है | 
  6. बारालाचा दर्रा - लाहौल को लद्दाख से जोड़ता है | इस दर्रे से चंद्रभागा और यूनान नदियां निकलती है

  • घाटियां - लाहौल में 3  घाटियां है - चंद्रा घाटी, भागा  घाटी, चंद्रभागा घाटी | 
  • नदियां - चंद्रा, भागा, स्पीति और पिन लाहौल स्पीति की प्रमुख नदियां है | चंद्रा  और भागा नदी बारालाचा दर्रे से निकलती है | 

  • ग्लेशियर - हिमाचल का सबसे बड़ा ग्लेशियर शिगड़ी ग्लेशियर (25 किलोमीटर ) है |   


  • कला, संस्कृति, मेले और गोम्पा
  1. गोम्पा - खारंदोग, शशुंर, गेमूरऔर गुरुघंटाल गोम्पा लाहौल में और, ताबो,  धांकर गोम्पा स्पीति में स्थित है | 
  2. धर्म - लाहौल में हिन्दू और बौद्ध धर्म मानने वाले लोग है | 
  3. विवाह - लाहौल में तभागस्तन/मोथेबियाह व्यवथित/ तय है | कौंची विवाह भाग कर  किया गया विवाह है | 
  4. त्यौहार -लडरचा, सिस्सू मेला, फागली  मेला पौरी मेला, लोसर | 
  5. लोकनृत्य - शेहनी, धुरे, घारफी( लाहौल स्पीति का सबसे पुराना नृत्य)  है | 
  6. पेय -छांग जो चावल, गेहूं से बनती है एक देसी शराब | 

  • अर्थव्यवस्था - जर्मन पादरी A.W. Hide ने 1857 ई०  में लाहौल में आलू की खेती शुरु करवायी थी | कुठ की खेती 1925  में शुरू हुई | 
  • 2011  की जनगणना 
  1.   2011 में लाहौल स्पीति की जनसंख्या 31,528 | 
  2.  2011  में लाहौल स्पीति का लिंगानुपात  916 |  


Brief History of Kinnaur district (HP) किन्नौर जिले संक्षिप्त इतिहास -------------

किनौर जिले का जिले के रूप में गठन 21 अप्रैल,1960. को हुआ था। इसका जिला मुख्यालय रिकांगपिओ में है | किन्नौर का कुल क्षेत्रफल 6401 वर्ग किलोमीटर का है | किन्नौर हिमाचल प्रदेश के पूर्व में स्थित है | किन्नौर के पूर्व में तिब्बत, दक्षिण में उत्तराखंड, पश्चिम में कुल्लू, दक्षिण और दक्षिण पश्चिम में शिमला तथा उत्तर पशचिम  में लाहौल स्पीति जिले स्थित है | 

घाटियां - सतलुज घाटी किन्नौर की सबसे बड़ी घाटी है | हाँगराँग घाटी स्पीति नदी के साथ स्थित है जो कहब गांव के पास सतलुज में मिलती है | सुनाम या रूपघटि  रोपा नदी द्वारा बनती है बसप्पा घाटी को सांगला घाटी भी कहा जाता है | यह घाटी बसपा नदी द्वारा निर्मित होती है | भाभा किन्नौर का सबसे बड़ा गावं है जो भाभा में स्थित है | 
  1. नदियां - सतलुज नदी किन्नौर को दो बराबर भागों में बांटती है | सतलुज को तिब्बत में जुगन्ति और मुकसुंग के नाम से जाना जाता है | रोपा नदी शियसु के पास सतलुज नदी में मिलती है| कसांग, तैती, यूला,मुलगुन, स्पीति और बस्पा सतलुज की किन्नौर में प्रमुख सहायक नदियां है | 
  2. झीलें ---- नाको (हांगरांग झील में स्थित) और सोरंग (नीचर तहसील में स्थित) किन्नौर की प्रमुख झीले है| 
  3. वन ---- नियोजा वृक्ष पुरे देश में केवल किन्नौर में पाया जाता है |  
  4. विवाह - ----किन्नौर में जनेटांग व्यवस्थित विवाह है | दमचल शीश, दमटंग शीश,जूजीश प्रेम विवाह है | दरोश, डबडब,हचिश, नेम्सः डेपांग जबरन विवाह है | 'हर' दूसरे की पत्नी को भगाकर किया गया विवाह है| 
  5. लवी  मेला -----बुशहर के राजा केहरि सिंह ने 1683 ई०  में रामपुर में लवी मेला शुरू किया | यह एक व्यापारिक मेला है जहां से तिब्बत से व्यापर होता था | यह हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराण मेला है | 
  6. किन्नौर के कड़छम में भेड़ प्रजनन केंद्र है |
  7. जलविद्युत परियोजनाएं -
  • संजय जलविद्युत परियोजना (भाभा) 120 मेगावाट,
  • नाथपा झाखरी परियोजना  (1500 मेगावाट), 
  • वस्पा  जलविद्युत परियोजना जिले की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं है | 
    



Brief History of Shimla district (HP)----

शिमला को पहले महासू के नाम जाता था इसका जिले के रूप में गठन 1972 ईस्वी में हुआ था और इसका
जिला मुख्यालय शिमला में है | शिमला का कुल क्षेत्रफल 5,131 वर्ग किलोमीटर है | शिमला जिला हिमाचल
प्रदेश के दक्षिण पूर्व में स्थित है | शिमला के पूर्व में किनौर और उत्तराखंड, दक्षिण में सिरमौर, दक्षिण पूर्व
में उत्तराखंड,उत्तर में कुल्लू और मंडी, पश्चिन में सोलन स्थित है | 

पर्वत श्रृंखलाएं एवं चोटियां शिमला शहर में जाखू पहाड़ी, प्रॉस्पेक्ट पहाड़ी, ओब्जर्वेट्री पहाड़ी,समर पहाड़ी और एलिस्जिम पहाड़ी स्थित है | जिसमे जाखू सबसे ऊंची पहाड़ी है | शिमला शहर की जाखू चोटी, चायल की सियाह चोटी, चौपल तहसील की चूड़धार,रोहडु तहसील की चांसल चोटी, सुन्नी तहसील की शैली चोटी और कुम्हारसेन तहसील की हाटू चोटी शिमला की प्रसिद्ध चोटियां है | 


नदियां  शिमला जिले में सतलुज, गिरी और पब्बर प्रमुख नदियां है | 

  • सतलुज नदी - सतलुज नदी भडाल से शिमला जिले में प्रवेश कर कुल्लू और मंडी जिले के साथ करसोग
  • के साथ सीमा बनाती है| सतलुज नदी की सहायक नदियां जो शिमला में बहती है - नोगली, मांछद,
  • बैहरा, खेखर, छामद और सावेरा | 
  • गिरी नदी - गिरी नदी कूपर चोटी जुब्बल से निकलती है | 
  • पब्बर नदी - पब्बर नदी चन्द्रनाहन झील से निकलती है | पब्बर नदी उत्तराखंड में त्यूणी के पास टौंस
  • नदी में मिलती है | 

झीलें 

  • चन्द्रनाहन 
  • तानुजुब्बल 
  • गढ़कुफ़र 

झरने/चश्मे 

ज्योरी 

  • चैडविक

Brief History of Bilaspur district (HP)

बिलासपुर का जिले के रूप में गठन 1 जुलाई,1954 ईस्वी को हुआ था इसका जिला मुख्यालय बिलासपुर में
स्तिथ है | बिलासपुर का कुल क्षेत्रफल 1,167 वर्ग किलोमीटर है |
बिलासपुर जिला हिमाचल प्रदेश के दक्षिण पश्चिममें स्थित है |
बिलासपुर के पूर्व में मंडी और सोलन, दक्षिण में सोलन, पश्चिम में पंजाब, उत्तर में हमीरपुर और मंडी
तथा पश्चिम में ऊना जिला स्थित है | सतलुज नदी बिलासपुर को दो भागों में बांटती है पहाड़ियां/धार -----बिलासपुर (कहलूर) को सातधार-कहलूर भी कहा गया है क्यूंकि यहां सात पहाड़ियां है | नैनादेवी पहाड़ी - इस पहाड़ी पर नैनादेवी जी का मंदिर है | 
कोटपहाडी/धार - कोटधार ने बछरेतु किला स्थित है | 
झंझियार धार - सीर खड्ड इसे दो भागों में बांटता है | 
तियून धार - तियून किला, पीर बियानु का मंदिर,नौरंगगढ़ किला इस पहाड़ी पर स्थित है |  
बन्दाला धार - यह धार 17 किलोमीटर लम्बी है | 
रतनपुर पहाड़ी/धार - इस पहाड़ी पर रतनपुर किला स्थित है जिसमे डेविड ऑक्टर लोनी ने गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा को हराया था | 
बहादुरपुर पहाड़ी/धार - यहाँ बहादुरपुर किला स्थित है जो 1980 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण बिलासपुर का सबसे ऊँचा स्थान है |  

नदियां ---सतलुज नदी - सतलुज नदी कसोल से बिलासपुर में प्रवेश है (मंडी से) और नैला गावं (भाखड़ा)से बिलासपुर को छोड़ पंजाब में प्रवेश करती है | 
  • गम्भर खड्ड - गम्भर खड्ड शिमला (तारा देवी) जिले से निकलकर 'नेरी' गावं से बिलासपुर में प्रवेश करती है | 
  • अलिखड्ड - अलिखड्ड सोलन के अर्की से निकलकर 'कोटि हरार' से बिलासपुर में प्रवेश करती है | 
चश्मे -----बस्सी और लुण्ड | 
झील -----बिलासपुर में गोबिंद सागर झील है जो की हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है | इस झील का निर्माण सतलुज नदी के पानी से हुआ है | भाखड़ा बांध इसी नदी पर बना हुआ है |  इस झील का क्षेत्रफल 168 वर्ग किलोमीटर है | इस बांध की ऊंचाई 225 मीटर है | यह बांध 1963 में बनकर तैयार हुआ | 
मेले -----नलवाड़ी मेला 1889 ई० में डब्ल्यू गोल्डस्टीन ने शुरू करवाया था | यह मेला पशुओं का मेला है जो अप्रैल माह में लगता है गुग्गा मेला गेहड़वी में लगता है | बैसाखी मेला हटवार में लगता है | नगरोन में गुग्गा नवमी का मेला लगता है | 
मंदिर ---बिलापुर के शाहतलाई में बाबा बालकनाथ मंदिर है | गुग्गा भटेड में गुग्गा मंदिर स्थित है | बिलासपुर में गोपाल मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर और रंगनाथ मंदिर स्थित है | धौलरा में नरसिंह मंदिर है | पीर पियानु में लखदाता मंदिर है | नैना देवी मंदिर नैना देवी में स्थित है | 
2011 की जनगणना ----2011 में बिलासपुर की जनसंख्याएँ  3,82,056 
  • 2011 में बिलासपुर का लिंगसनुपात 981 
  • 2011 में बिलासपुर का जनघनत्व 327

ऊना (Una) 

जिले के रूप में गठन 1972 ई०,जिला मुख्यालय ऊना | ऊना का कुल क्षेत्रफल 1540 वर्ग किलोमीटर है | ऊना हिमाचल प्रदेश के पश्चिम भाग में स्थित है | इसके उत्तर में काँगड़ा, पश्चिम में पंजाब राज्य, पूर्व में हमीरपुर और दक्षिण में बिलासपुर जिले की सीमाएं लगती है | 
  1. पर्वत श्रृंखला - ऊना जिला हिमालय पर्वत श्रेणी की शिवालिक पर्वतमालाओं के अंचल में बसा है | ऊना को पश्चिम में जस्वां दून की पहाड़ियों पंजाब से पृथक करती है | ऊना शहर दून के मध्य में स्थित है | ऊना जिले के पूर्व में जसवंधार या चिंतपूर्णी धार है हमीरपुर जिले में सोलह सिंगी धार के नाम से जाना जाता है | भरवैन इसकी सबसे ऊँची चोटी है | 
  2. नदियां - ब्यास और सतलुज के बीच बसे ऊना की प्रमुख नदी स्वान है | यह जसवां घाटी में बढ़ती हुई आनदपुर साहिब के पास सतलुज नदी में मिलती है | 
  3. मेले - ऊना जिले में चिंतपूर्णी मेला,बसौली में पीर निगाहा मेला, मैडी में बाबा बड़भाग सिंह मेला प्रसिद्ध है | 
  4. अर्थव्यवस्था - ऊना  जिले के पंखूबेला में बीज संवर्द्धन फार्म है | ऊना जिले कागजी नीम्बू, किन्नू, माल्टा, संतर और आम के उत्पादन के  प्रसिद्ध है | सरकार ने 'अंजोली' में एक पोल्ट्री फार्म खोला है | ऊना जिले के ३ स्थानों (जलेरा, बंगाणा और पुबोवाल) में दुग्ध अभीशीतन केंद्र है | मेहतपुर ऊना जिले का औद्योगिक केंद्र है ऊना नांगल रेल लाइन 1991 ई० में बनाई गेई | यह ब्रॉड गेज रेल लाइन है | 
  5. 2011 की जनगणना
  • 2011 में ऊना की जनसँख्या 5,21,057 
  • 2011 में ऊना का लिंगानुपात  977 
  • 2011 में ऊना का जनघनत्व  338 


कांगड़ा का इतिहास brief History Of Kangra district (HP)

जिले के रूप में गठन 01 नवंबर, 1966 और जिला मुख्यालय धर्मशाला है|

जिला कांगड़ा का कुल क्षेत्रफल 5739  वर्ग किलो मिटर है| प्राचीन काल में काँगड़ा त्रिगर्त के नाम से जाना जाता था|

इसकी स्थापना महाभारत के पूर्व की मानी जाती है| त्रिगर्त की स्थापना भूमिचंद ने की थी |

इसके 234वें राजा सुशर्मा ने जालंधर / त्रिगर्त के काँगड़ा में किले की स्थापना कर उसको अपनी राजधानी बनाया | 

1) त्रिगर्त की राजधानी - नगरकोट को भीमकोट, भीमनगर, सुशर्मापुर के नाम से भी जाना जाता था| और इसकी स्थापना सुशर्मा ने की थी| महाभारत के युद्ध में सुशर्मा ने कौरवों का साथ दिया था | 
2) 1615 में थॉमस कोरयत, 1666 में थेवेनोट, 1783 में फॉस्टर, और 183 में विलियम मूरक्राफ्ट ने काँगड़ा की यात्रा की थी |
3) महमूद गजनवी ने 1009 में काँगड़ा पर आकर्मण किया था| उस समय काँगड़ा का राजा जगदीश चंद्र था|1043 तक काँगड़ा किला तुर्को के कब्जे में था| 1043 में काँगड़ा के किले को तोमर राजाओं ने आजाद करवाया था| 1051 -1052 में पुनः तुर्कों के कब्जे में चला गया| 1060 में काँगड़ा के राजाओं ने पुनः काँगड़ा के किले पर कब्जा कर लिया | 
4) मुहममद बिन तुगलक ने 1337 में काँगड़ा पर आक्रमण किया था| उस समय काँगड़ा के राजा पृथ्वीचंद थे | 
5) फिरोजशाह तुगलक ने 1365 में काँगड़ा पर हमला किया| उस समय काँगड़ा के राजा रूपचंद थे | फिरोजशाह के पुत्र नसीरुद्दीन ने 1389 में भागकर नगरकोट पहाड़ियों में शरण ली उस समय काँगड़ा  के राजा सागरचंद थे |
6) "रूपचंद का नाम" मानिकचंद के नाटक में भी मिलता है जो 1562 के आसपास लिखा गया है |
7) फिरोजशाह तुगलक ज्वालामुखी मंदिर से 1300 पुस्तकें फ़ारसी में अनुवाद के लिए ले गया था इन पुस्तकों का फ़ारसी में दलिल ए फिजशाही के नाम से अनुवाद इजुद्दीन ख़ालिदखानी ने किया था|
8) तैमूरलंग ने 1398 में शिवालिक की पहाडियों  को लुटा था| उस समय वहां का राजा मेघ चंद था| 1399 में वापिसी में तैमूर लंग के हाथों धमेरी (नूरपुर) को लुटा गया| हिंदूर (नालागढ़) के राजा आलम चंद ने तैमूर लंग की सहायता की थी|
9) गुलेर राज्य की स्थापना हरिचंद ने की थी| गुलेर को हड़सर भी बोला जाता था|
10) मुगलवंश - अकबर के समकालीन राजा 1) धर्म चंद 1528 से 1563 2) मानिक चंद 1563 से 1570   3) जयचंद 1570 से 1585 4) विधि चंद 1585 से 1605 |
 11) त्रिलोक चंद (1605 से 1612) और हरि चंद-II  (1612 से 1627) ये दोनों राजा जहांगीर के समकालीन राजा थे| हरि चंद -II के समय नूरपुर के राजा सूरजमल ने विद्रोह कर चम्बा में शरण ली| सूरजमल के छोटे भाई जगत सिंह और रायन विक्रमाजीत की मदद से 1620 में काँगड़ा किले पर नवाब अली खान ने कब्जा कर लिया| नवाब अली खान काँगड़ा जिले का पहला मुग़ल किलेदार था| जहांगीर अपनी पत्नी नूरजहाँ के साथ गुलेर होते हुए काँगड़ा आया, और काँगड़ा जिले में मस्जिद बनवाई|
12) चंद्रभान सिंह  (1627 - 1660)  चंद्रभान सिंह को मुगलों ने राजगीर की जागीर देकर अलग जगह बसा दिया| चंद्रभान सिंह को 1660 ई० में औरंगजेब ने गिरफ्तार किया|
13) विजयराम सिंह (1660 -1697) विजयराम सिंह ने बीजापुर शहर की नीवं रखी और उसे अपनी राजधानी बनाया| 
14) आलम चंद (1897-1700) आलम चंद  ने 1697 में सुजानपुर के पास आलमपुर शहर की नींव  रखी| 
15) हमीरचंद (1700 -1747) आलमचंद के पुत्र हमीरचंद ने हमीरपुर में किला बनाकर हमीरपुर शहर की नींव  रखी| इसी के कार्यकाल में नवाब सैफ अली खान 1740 में काँगड़ा किले का अंतिम मुग़ल किलेदार बना| 
16) त्रिगर्त की राजधानीयां (1660-1697 - बीजापुर ) (1697- 1748  - आलमपुर ) (1761-1824 - सुजानपुर ) (1660 -1824 से पूर्व और बाद में काँगड़ा की राजधानी काँगड़ा शहर थी ) 1855  में अग्रेजो ने धर्मशाला को काँगड़ा कि राजधानी बनाया | 
 17) अभय चंद (1747-1750) अभय चंद  ने ठाकुरदवारा और 1748 में टिहरा में एक किले की स्थापना की| 
18) घमंड चंद (1751-1774) घमंड चंद ने 1761  में जौनपुर शहर की नींव  रखी| अहमद शाह दुर्रानी के आक्रमण का फायदा उठाकर घमंड चंद ने काँगड़ा किले  को छोड़कर अपनी पुरानी सारी रियासत पर कब्जा कर लिया| घमंड चंद को 1759 में अहमद शाह दुर्रानी  जालंधर दोआर का निजाम बनाया|  
19) संसार चंद -II (1775-1824) जस्सा रामगढ़िया पहला सिक्ख  था जिसने काँगड़ा चम्बा और नूरपुर की   पहाड़ियों पर आक्रमण किया| उसे 1775 में जय सिंह कन्हैया  ने हराया| संसार चंद ने जय सिंह कन्हैया को काँगड़ा किले पर कब्जे के लिए 1781 में बुलाया था| उसने 1787 में संसार चंद को काँगड़ा किला सौंप दिया तथा  मैदानी भू-भाग ले लिया| 
संसार चंद के आक्रमण - संसार चंद  ने रिहलू के लिए चम्बा के राजा को नरेटी शाहपुर में हराया| उसने मंडी के राजा ईशवरी सेन को बंदी बनाकर 12 वर्षों तक नादौन में रखा जिसे बाद में अमर सिंह थापा ने छुड़ाया| संसार चंद ने 1794  में बिलासपुर पर आक्रमण किया जो उसके पतन का कारण बना| बिलासपुर के राजा महान चंद्र ने गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को संसार चंद पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया| 
20) अनिरुद्ध चंद (1824) संसार चंद के बाद उसका बेटा अनिरुद्ध चंद काँगड़ा का राजा बना| महाराणा रणजीत सिंह ने अनिरुद्ध चंद से अपने प्रधानमत्री राजा ध्यानसिंह (जम्मू)  के पुत्र हिरा सिंह के लिए उसकी बहन का हाथ माँगा| 1846 में काँगड़ा पूर्ण रूप से ब्रिटिश प्रभुत्व में आ गया| अनिरुद्ध चंद के बाद रणवीर चंद (1828) और प्रमोद चंद (1847), प्रताप चंद (1857), जयचंद (1864) और ध्रुवदेव चंद काँगड़ा के राजा बने| 
21) गुलेर रियासत का पुराना नाम ग्वालियर था| काँगड़ा के राजा हरिचंद 1405 में गुलेर रियासत की स्थापना हरिपुर में की जहाँ उसने शहर और किला बनवाया| हरिपुर किले को गुलेर किला भी कहा जाता है| हरिपुर गुलेर रियासत की राजधानी थी| 
22) रामचंद (1540-1570) गुलेर रियासत के 15 वें  राजा ने काँगड़ा के राजा जयचंद को पकड़ने में मुगलों की मदद की| यह अकबर का समकालीन था| "तारीख ए दौदी" नामक पुस्तक इस्लाम शाह द्वारा लिखी गयी है जिसमे गुलेर राज्य का वर्णन मिलता है| 
23)  जगदीश चंद (1570-1605) 1572 में काँगड़ा के राजा के विद्रोह को दबाने के लिए जो सेना भेजी उसमे जगदीश चंद ने भाग नहीं लिया| 
24) रूपचंद (1610-1635) रूपचंद ने काँगड़ा किले पर कब्जे के लिए मुगलों की मदद की थी| वह जहांगीर का समकालीन था| 
25) मानसिंह (1635-1661) मानसिंह   को उसकी बहादुरी के लिए शाहजहां ने "शेर अफगान" की उपाधि दी थी| उसने तारागढ़ किले पर (1641-1642) में कब्जा किया था| मानगढ़ का किला मानसिंह ने बनाया था| 1661 में उसकी मृत्यु बनारस में हो गयी| 
26) राज सिंह (1675-1695) राज सिंह ने चम्बा के राजा चतर सिंह,बसौली  के राजा धीरजपाल और जम्मू के किरपाल देव के साथ मिलकर मुगलों को हराया था| 
27) प्रकाश सिंह (1760-1790) प्रकाश सिंह के समय घमंड चंद ने गुलेर पर कब्जा किया| बाद में संसारचंद ने गुलेर पर कब्जा किया| ध्यान सिंह बजीर ने कोटला इलाका गुलेर राज्य के कब्जे (1785) में रखने में मदद की | 
28) भूप सिंह (1790-1820) भूप सिंह गुलेर का आखिरी राजा था जिसने  शासन किया | देसा सिंह मजीठिया ने 1811 में गुलेर पर कब्जा कर कोटला किले पर कब्जा किया| भूप सिंह के पुत्र शमशेर सिंह (1820-1877)  ने सिक्खो से हरिपुर किला आजाद करवा लिया था| शमशेर सिंह के बाद जय सिंह, रघुनाथ सिंह और बलदेव सिंह (1920) गुलेर वंश के राजा बने| वर्ष 1846 में गुलेर पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया| 
29) नूरपुर राज्य - नूरपुर का पुराना नाम धमेरी था| नूरपुर राज्य की पुरानी राजधानी पठानकोट थी| अकबर के समय में नूरपुर के राजा बासदेव ने राजधानी पठानकोट से नूरपुर बदली | प्राचीन काल में नूरपुर और पठानकोट औदुम्बर क्षेत्र के नाम से जाना जाता था| नूरपुर राज्य की स्थापना चंद्रवंशी दिल्ली के तोमर राजपूत झेठपाल द्वारा 1000 में की गयी थी| 
30) जसपाल (1313-1337) अलाउदीन खिलजी का समकालीन था| 
31) कैलाशपाल (1353-1397) कैलाशपाल ने तातर खान को हराया था| 
32) भीम पाल  (1473-1513) सिकंदर लोदी का समकालीन था| 
33) भक्तमल (1513-1558) भक्तमल का विवरण "अकबरनामा" में मिलता है| भक्तमल के समय शेरशाह सूरी के पुत्र स्लिमसुरशाह ने मकौट किला बनवाया| 
34) तख्तमल (1558-1580) को भक्तमल के स्थान पर राजा बनाया गया| वह भक्तमल का है था| उसने सर्वप्रथम अपनी राजधानी को पठानकोट से धमेरी बदलने के बारे म सोचा परन्तु हकीकत में लेने से पहले ही मर गया|   
35) बासदेव (1580-1613) बासदेव ने नूरपुर की राजधानी पठानकोट से धमेरी बदली| बासदेव ने कई बार मुगलों के विरुद्ध विद्रोह किया| ये सारे विद्रोह सलीम के समर्थन में थे| 
36) सूरजमल (1613-1619) सूरजमल को बासदेव की मृत्यु के बाद नूरपुर का राजा बनाया गया| वह  बासदेव का बेटा था| सूरजमल ने मुर्तजा खां से और बाद में शाह कुली खान एवं मोहम्मद तकी के साथ झगड़ा कर काँगड़ा  किले पर कब्जे के अभियान को रद्द करवा दिया| सूरजमल ने मोके का फायदा उठा खुद क्षेत्र पर कब्जा करना शुरू कर दिया | 
37) जगत सिंह (1619-1649) जगतसिंह के समय जहांगीर 1622 में अपनी पत्नी के साथ धमेरी आया| जगत सिंह ने नूरजहां के सम्मान में धमेरी का नाम नूरपुर रखवाया| जगत सिंह ने 1623 में डलोघ युद्ध में चम्बा के राजा जनार्दन को मारा और बलभद्र को अपनी पूरी निगरानी में राजा बनाया| 
38) राजरूप सिंह (1644-1661) के बाद मंधाता (1661-1700) नूरपुर के राजा बने| इसके शासनकाल में बाहु सिंह जो की राजरूप सिंह का भाई था| उसने शाहपुर में मुगलों से जागीर प्राप्त कर राजधानी बनाया| 1686 में भूपसिंह ने इस्लाम कबूल कर  मुरीद खान नाम से प्रसिद्ध हुआ| नूरपुर पर 1781 में सिक्खो ने कब्जा कर लिया|  
39) पृथ्वी सिंह (1735-1789) पृथ्वी सिंह के समय घमंड चंद, जस्सा सिंह रामगढ़िया, ने नूरपुर क्षेत्र पर पर कब्जा बनाये रखा| वर्ष 1785 में नूरपुर रियासत लखनपुर के पास स्थान्तरित हो गयी जो की 1846 तक वहीं रही| 
40) बीर सिंह (1789-1846) वीर सिंह नूरपुर राज्य पर शासन करने वाला अंतिम राजा था| वीर सिंह ने 1826  में महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध विद्रोह किया| वीरसिंघ को पकडकर रणजीत सिंह में 7 वर्ष तक अमृतसर के गोविंदगढ़ किले में रखा जिसे बाद में चम्बा के राजा चरहत सिंह ने 85 हजार रूपये देकर छुड़वाया क्यूंकि बीर सिंह उनका जीजा था| 1846 में अंग्रेजों  का नूरपुर पर कब्जा हो गया| 
41) सिब्बा राज्य गुलेर राज्य की शाखा थी, जिसकी स्थापना गुलेर के राजा के छोटे भाई सिब्रम चंद ने 1450 में की थी | जहांगीर में सिब्बा राज्य भी आया था| सिब्बा राज्य पर 1786-1806 तक संसारचंद, 1808 में गुलेर के भूपचन्द और 1809-1830 तक महाराजा रणजीत सिंह ने कब्जा किया| सिब्बा राज्य को  डाडा सिब्बा भी कहा जाता है| 
42) दत्तापुर राज्य जसवां  के दक्षिण, सिब्बा के पश्चिम, गुलेर के उत्तर में स्थित था| दत्तापुर राज्य सिब्बा राज्य की शाखा थी जिसकी स्थापना 1550  में दत्तारचंद ने की थी| डडवाल इस परिवार का उपनाम है| 
43) बघाहल राज्य की राजधानी बीर थी| इस राज्य की स्थापना एक ब्राह्मण  राजा बनने के बाद चंद्रवंशी राजपूत कहलाया | "पाल" उपनाम वाले इस राज्य के राजाओं में पृथ्वी पाल (1710-1720) प्रसिद्ध है जिसे मंडी के राजा सिद्धसेन  ने 1720 में दमदमा महल में मरवाया था| पृथ्वी पाल के बाद रघुनाथ पाल (1720-1735) और दलेल पाल (1735-1745) राजा बने| मानपाल (1749) बघाहल का अंतिम शासक था| उसके बाद काँगड़ा और गुलेर  ने इस पर कब्जा कर लिया| 




कुल्लू का संक्षिप्त इतिहास brief History Of Kullu district (HP )

 जिले के रूप में गठन 1963, जिला मुख्यालय कुल्लू है | कुल्लू का कुल क्षेत्रफल 5503 वर्ग किलोमीटर है | कुल्लू हिमाचल प्रदेश के मध्य भाग में स्थित जिला है | कुल्लू के उत्तर में और उत्तर पूर्व में लाहौल स्पीति, पूर्व में किन्नौर, दक्षिण में शिमला, पश्चिम और दक्षिण में मंडी और उत्तर पश्चिम में काँगड़ा जिला स्थित है

इतिहास 

 पाल वंश 

कुल्लू रियासत की स्थापना -  कुल्लू का पौराणिक ग्रंथों में 'कुल्लुत देश, के नाम से वर्णन मिलता है | रामायण,विष्णुपुराण,महाभारत,मार्कडेंय पुराण, वृहस्तसंहिता पर कल्हण की राजतरंगिणी में 'कुल्लुत' का वर्णन मिलता है | कुल्लू घाटी को कुलंतपीठ भी कहा गया है क्यूंकिसे रहने योग्य संसार कहा गया हैकुल्लू रियासत की स्थापना विहंगमनीपाल ने हरिद्वार से आकर की थी | विहंगमनीपाल के पूर्वज इलाहाबाद से अल्मोड़ा और हरिद्वार आकर बस गए| विहंगमनीपाल स्थानीय जागीरदारों से पराजित होकर प्रारम्भ में जगतसुख के चपाईराम के घर रहने लगे | भगवती हिडिम्बा देवी के आशीर्वाद से विहंगमनीपाल ने रियासत की पहली राजधानी जगतसुख स्थापित की | विहंगमनीपाल के पुत्र पछ्पाल ने 'गजन' और 'बेवला' के राजा को हराया
कुल्लू रियासत की 7 बजीरियां 
  1. परोल बजीरी (कुल्लू)  
  2. बजीरी रूपी (पार्वत और सैंज खड्ड के बीच)
  3. बजीरी लग महाराज (सरवरी और सुल्तानपुर से बजौरा तक)
  4.  बजीरी भंगाल 
  5. बजीरी लाहौल 
  6. बजीरी लग सारी (फोजल और सरवरी खड्ड के बीच)
  7. बजीरी सिराज (सिराज को जलौरी दर्रा दो भागों में बांटता है)
महाभारत काल - कुल्लू रियासत की कुल देवी हिडिम्बा ने भीम से विवाह किया था | घटोतकच भीं और हिडिम्बा का पुत्र था जिसने महाभारत युद्ध में भाग लिया था | हिडिम्बा  (टांडी)का वध किया था जो देवी राक्षसी का भाई था
हेनसांग का विवरण - चीनी यात्री हेनसांग ने 635 ई० में कुल्लू रियासत की यात्रा की | उन्होंने कुल्लू रियासत की परिधि 800 किलोमीटर बताई जो जालंधर से 187 किलोमीटर दूर स्थित था | भगवान बुद्ध की याद में अशोक ने कुल्लू में बौद्ध स्तूप बनवाया
विसूदपाल -नग्गर के राजा करमचंद को युद्ध में हराकर विसूदपाल ने कुल्लू की राजधानी जगतसुख से नग्गर स्थानांतरित की
रुद्रपाल और प्रसिद्धपाल - रुद्रपाल के शासनकाल में स्पीति के राजा राजेंद्र सेन ने कुल्लू पर आक्रमण करके उसे नरजना देने के लिए विवश किया | प्रसिद्धपाल ने स्पीति के राजा छतसेन से कुल्लू और चम्बा के राजा से लाहौल को आज़ाद करवाया | 
दतेश्वर पाल - दतेश्वर पाल के समय चम्बा के राजा मेरुवर्मन (680-700 ई०) ने कुल्लू पर आक्रमण कर दतेश्वर पाल को हराया और वह इस युद्ध में मारा गया | दतेश्वर पाल 'पालवंश' का 31वां राजा था |
जारेशवर पाल (780-800 ई०) - जारेशवरपाल ने बुशहर रियासत की सहायता से कुल्लू और चम्बा से मुक्त करवाया |
भूपपाल - कुल्लू के 43वें राजा भूपपाल सुकेत राज्य के संस्थापक वीरसेन के समकालीन थे | वीरसेन ने सिराज में भूपपाल को हराकर उसे बंदी बनाया |
पड़ोसी राज्य के पाल वंश पर आक्रमण - हस्तपाल -2 के समय बुशहर, नरिंदर पाल के समय बंगाहल,नन्द्पाल के समय काँगड़ा, केरल पाल के समय सुकेत ने कुल्लू पर आकर्मण कर कब्जा किया और नजराना देने के मजबूर किया | 
उर्दान पाल (1418-1428 ई०)- पाल वंश के 72वें राजा  उर्दान पालमें जगतसुख में संध्या देवी का मंदिर बनवाया
पाल वंश का अंतिम शासक - कैलाश पाल (1428-1450 ई०) कुल्लू का अंतिम राजा था |
सिंह बदानी वंश 
कैलाश पाल के बाद के 50 वर्षों के अधिकतर समय में कुल्लू सुकेत रियासत के अधीन रहा | वर्ष 1500 ई०  में सिद्ध सिंह बदानी वंश की स्थापना की | उन्होंने जगतसुख को अपनी राजधानी बनाया |
बहादुर सिंह (1532 ई०) - बहादुर सिंह सुकेत के राजा अर्जुन सेन का समकालीन था | बहादुर सिंह ने बजीरी रूपी को कुल्लू राज्य का भाग बनाया | बहादुर सिंह ने मकरसा में अपने लिए महल बनवाया | मकरसा की स्थापना महाभारत के विदुर के पुत्र मकस ने की थी | राज्य की राजधानी उस समय नग्गर थी | बहादुर सिंह ने अपने पुत्र प्रताप सिंह का विवाह चम्बा के राजा गणेश वर्मन की बेटी से करवाया |बहादुर सिंह के बाद प्रताप सिंह (1559 -1575 ई०), परतब सिंह (1575 -1608 ई०), पृथ्वी सिंह (1608 -1635 ई०) और कल्याण सिंह (1635-1637 ई०) मुगलों के अधीन रहकर कुल्लू पर शासन कर रहे थे |
जगत सिंह (1637 -72 ई०) - जगत सिंह कुल्लू रियासत का सबसे शक्तिशाली  राजा था |जगत सिंह ने लग बजीरी और बहरी सिराज पर कब्जा किया | उन्होंने डुग्गिलग के जोगचंद और सुल्तानपुर के सुल्तानचन्द (सुल्तानपुर के संस्थापक )को (1650-55 ई०)के बीच पराजित कर 'लग' बजीरी पर कब्जा किया | औरंगजेब उन्हें 'कुल्लू का राजा' कहते थे | कुल्लू के राजा जगत सिंह ने 1640 ई० में दाराशिकोह के विरुद्ध विद्रोह किया तथा 1657 ई० में उसके फरमान को मानने से मना कर दिया था |
मानसिंह (1688-1702 ई०) - कुल्लू के राजा मानसिंह ने मंडी पर आक्रमण क्र गम्मा (द्रंग) नमक की खानों पर 1700 ई० में कब्जा जमाया | उन्होंने 1688 ई० में वीर भंगाल क्षेत्र पर नियंत्रण किया | उन्होंने लाहौल - स्पीति को अपने अधीन कर तिब्बत की सीमा लिंगटी नदी के साथ निर्धारित की | राजा मानसिंह ने शंगरी और बुशहर रियासत के पंडरा ब्यास क्षेत्र को बिस अपने अधीन किया | उनके शासन में कुल्लू रियासत का क्षेत्रफल 10,000 वर्ग मील हो गया | 
राजसिंह (1702 -1731 ई०) - राजा राजसिंह के समय गुरु गोविन्द सिंह जी ने कुल्लू की यात्रा की |
टेढ़ी सिंह (1742-1767 ई०) - राजा टेढ़ी सिंह के समय घमंड चंद ने कुल्लू पर आक्रमण किया |
प्रीतम सिंह (1767-1806 ई०) - राजा प्रीतम सिंह संसारचंद द्वितीय का समकालीन राजा था | उसके समय कुल्लू का वजीर भागचंद था |
विक्रम सिंह (1806-1816 ई०) - राजा विक्रम सिंह के समय में 1810 ई० में कुल्लू पर पहला सिक्ख आकर्मण हुआ जिसका नेतृत्व दिवान मोहकम चंद कर रहे थे |
अजित सिंह (1816- 1861 ई०) - राजा अजित सिंह के समय 1820 ई० में विलियम मूरक्राफ्ट ने कुल्लू की यात्रा की | कुल्लू प्रवास पर आने वाले वह पहले यूरोपीय यात्री थे | राजा अजित सिंह को सिक्ख सम्राट शेरसिंह ने कुल्लू रियासत से खदेड़ दिया (1840  ई० में) | ब्रिटिश संरक्षण के अधीन सांगरी रियासत में शरण लेने के बाद 1841 ई० में अजित सिंह की मृत्यु हो गयी | कुल्लू रियासत 1840 ई० से 1846 ई० तक सिक्खो  के अधीन रहा
ब्रिटिश सत्ता और जिला निर्माण - प्रथम सिक्ख युद्ध के बाद 9 मार्च, 1846ई० को कुल्लू रियासत अंग्रजों के अधीन गया | लाहौल स्पीति को 9 मार्च,1846 ई० को कुल्लू में मिलाया गया | स्पीति को लद्दाख से कुल्लू को मिलाया गया | कुल्लू को 1846 ई० में काँगड़ा का उपमंडल बनाकर शामिल किया गया | कुल्लू उपमंडल से अलग होकर लाहौल स्पीति जिले का गठन 30 जून, 1960 ई० को हुआ | कुल्लू जिले के पहले उपायुक्त गुरुचरण  सिंह थे | कुल्लू जिले का 1 नवंबर, 1966 ई० को पंजाब से हिमाचल प्रदेश में विलय हो गया | 



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