हिमाचल का संक्षिप्त इतिहास ---भाग 2 Brief history of Himachal pradesh part- 2





चम्बा जिले का संक्षिप्त इतिहास ----

                                       चम्बा रियासत की नींव राजा मेरु ने 550 ई में रखी और भरमौर कसबे को अपनी राजधानी बनाया।
साहिल वर्मन (920 ई -940 ई ) ने 930 ई राजकुमारी चम्पावती के नाम पर रावी नदी के किनारे चंपा नगर की स्थापना की जो बाद में चम्बा  के नाम से प्रसिद्ध हुआ। साहिल वर्मन ने इसे अपनी रजधानी बनाया।

 चम्बा नगर में पानी की आपूर्ति के लिए रानी नैना देवी ने अपनी बलि दी थी।  नैना देवी की याद में आज भी चम्बा में सुही मेला लगता है। जिसमे मुख्य रूप से महिलाएँ और बच्चे मनाते है। साहिल वर्मन के शासन काल में चाकली के नाम से प्रसिद्ध तांबे के सिक्के का चलन था।

गणेश वर्मन के पुत्र प्रताप वर्मन ने अपने नाम के आगे सिंह उपनाम जोड़ा और उसके बाद चम्बा के सभी राजा अपने नाम के साथ सिंह वर्मन लगाने लगे। प्रताप सिंह वर्मन के कार्यकाल में मुगल सम्राट अकबर का चम्बा पर अधिकार हो गया।
बलभद्रसिंह वर्मन ने अपने शासनकाल में लक्ष्मी नारायण मंदिर को अत्यधिक दान दिया जिससे राजकोष लगभग समापत हो गया जिसके कारण उसके पुत्र जनार्दन ने उसको गद्दी से उतार दिया और स्वयं राजा बन गया। जनार्दन के राज्य संभालते ही उसका नूरपुर के राजा सूरजमल के साथ युद्ध आरम्भ हो गया। जो 12 बर्षों तक चला। 

सूरजमल के भाई जगत सिंह ने 1623 ई में चम्बा के शाही महल में जनार्दन की हत्या कर डाली। जनार्दन की मृत्यु के समय उसकी पत्नी गर्भवती थी। राजा जगत सिंह की आज्ञा के अनुसार रानी के बालक की हत्या होना तय हुआ पर रानी ने बालक के जन्म होते ही उसे मंडी पहुंचा दिया। बाद में मुगल सरकार ने पृथ्वी सिंह को चम्बा का शासक माना। और वर्मन उपनाम भी शासकों ने अपने नाम से हटा दिया।  1660 -1670 ई तक लाहौल ,चंद्र भागा घाटी और लदाख पर चम्बा का अधिकार रहा।
1809 ई में रणजीत सिंह ने चम्बा पर अपना अधिकार जमा लिया। श्री सिंह ने 1844 ई में चम्बा का राज्य संभाला। 1846 ई में चम्बा पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो गया। अंग्रेजों ने 1848 ई में चम्बा रियासत श्री सिह को दुबारा सौंप दी। इसके बदले में श्री सिंह ने 12 हजार अंग्रेजों को देना तय किया। राज्य की आर्थिक बदहाली को ठीक करने  लिए पंजाब सरकार के अफसर मेजर बलेडर रेड 1 जनवरी 1863 को चम्बा आये। उन्होंने कुछ सुधार कार्यक्रमों से चम्बा राजकीय अर्थब्यवस्था ठीक किया।
गोपाल सिंह ने 1873 में फिर से राज्य के आर्थिक हालात खराब कर दिए। भूरि सिंह 1904 -1919 ई को अंग्रेजी सरकार ने उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित किया और 1908 में भूरि सिंह म्यूजियम की स्थापना की।
राजा लक्ष्मण सिंह 1935 -1948 के कार्यकाल में सन 1948 में चम्बा हिमाचल में शामिल हो गया।


जिला काँगड़ा का 
संक्षिप्त इतिहास -------

                                                 जिला काँगड़ा कई रियासतों से मिलकर बना है। जो इस प्रकार से है ---

काँगड़ा रियासत ---यह हिमाचल की सबसे पुरानी रियासत है।  और इसका नाम जालंधर था। यह रियासत त्रिगर्त ,सुशर्मपुर ,नगरकोट ,भीमकोट आदि के नामों से भी जानी जाती है। इस रियासत की नींव भूमिचंद ने द्वापर युग में रखी। दूसरी शताब्दी में कुणिंद आदि शासकों ने काँगड़ा पर अधिकार किया। पांचवी शताब्दी में गुपतवंश का भी काँगड़ा पर शासन रहा। हर्षवर्धन ने भी 630 ई से 645 ई तक यहाँ शासन किया। 1009 ई  में महमूद गजनवी ने काँगड़ा में लूटपाट की 1384 -1360 ई में फिरोजशाह ने ज्वाला जी और काँगड़ा के मंदिरों में लूटपाट की वह यहाँ से बहुत से संस्कृत के ग्रन्थ ले गया और उसने उन्हें फारसी में अनुवादित किया। 1556 ई में यहाँ पर मुगल शासन आरम्भ हुआ। 1622 ई में यह दुर्ग जहांगीर ने अपने कब्जे में लिया। 1772 ई में यह रियासत मुगलों से अहमदशाह दुरानी के कब्जे में आ गई। संसारचंद ने भी काँगड़ा पर शासन किया। 1846 में सिखों को हरा कर अंग्रेजों ने काँगड़ा रियासत पर कब्जा किया।


गुलेर रियासत -----इस की नींव काँगड़ा के राजा हरिचंद ने 1405 ई में रखी यहाँ पर मुख्यत राजसिंह ,प्रकाश सिंह ,भूपसिंह ,रणजीत सिंह, धर्मचंद और अंग्रेजों का शासन रहा।


जसवां रियासत ---इसकी नींव पूर्वचंद ने रखी। इसकी राजधानी राजपुरा थी। 1786 में राजा संसारचंद ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। 1809 में रणजीत सिंह ने जसवां पर कब्जा कर लिया।


सिब्बा रियासत -----इसकी स्थापना 1450 में सिबरन चंद ने की रणजीतसिंह ने सिब्बा को गुलेर से जीत कर इसे दो भागों में बाँट दिया उसने सिब्बा को गोविन्दसिह को और डाडा जागीर को देवीसिंह को दे दिया। 1874 को अंग्रेजों ने फिर से इनको मिलकर एक कर दिया।


दतारपुर रियासत -----इसकी नींव सिब्बा रियासत के वंशज दतार चंद ने 1550 ई में रखी।  यहाँ के राजा को अंग्रेजों ने जसवां के राजा के साथ विद्रोह के आरोप में अल्मोड़ा भेज दिया।


नूरपुर रियासत ------इसकी स्थापना जीतपाल ने 1095 ई में की।  जगत सिंह ने इसका नाम धमेरी से बदल कर नूरजहां के नाम पर नूरपुर रखा।


कुटलहर रियासत -----की स्थापना जसपाल नामक एक ब्राह्मण युवक ने की थी।
1948 में काँगड़ा पंजाब का भाग था और 1966 में पुनर्गठन के समय काँगड़ा हिमाचल में मिल गया।



 जिला शिमला का  संक्षिप्त इतिहास ---------

                                                   शिमला जिला कुछ छोटी बड़ी रियासतों से मिलकर बना है जो इस प्रकार से है -------

क्योंथल रियासत ----इस रियासत की नींव सुकेत रियासत के संस्थापक वीर के भाई गिरी सेन ने लगभग 1211 ई में की थी। 

बलसन रियासत ----इसकी स्थापना सिरमौर राज्य के राजा उग्रसेन के वंशज अलक सिंह ने की थी। 
भज्जी रियासत -----इसकी स्थापना काँगड़ा के उदयपाल ने की थी। अब यह सुनी तहसील का हिसा है। 
 कोटी रियासत ----की स्थापना कुटलैहड़ राज्य के वंशज ठाकुर चंद ने की थी।अब यह कसुमटी तहसील का हिस्सा है। 

जुब्बल रियासत ---इस की स्थापना सिरमौर राज्य के राठौर वंशी राजा उग्रसेन के पुत्र करमचंद ने 12 वीं शताब्दी में की थी।  अब यह शिमला जिले में आती है। 
सारी रियासत ----इसकी स्थापना मूलचंद ने की थी। यह पब्बर नदी के दाएं किनारे पर स्थित थी। अब यह शिमला जिले में स्थित है। 

रावीगढ़ रियासत ----इसकी स्थापना मूलचंद के भाई दूनी चंद ने की थी।  यह पब्बर नदी के बाएं किनारे पर स्थित थी। अब यह जुब्बल तहसील में है। 
कुमारसेन रियासत ----इसकी स्थापना किरत सिंह ने लगभग 1000 ई में की थी।  यह सतलुज नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। आजकल कुमारसेन शिमला जिले में आती है। 

देलथ रियासत ---इसकी नींव किरत सिंह के भाई पृत्वी सिंह ने रखी। अब यह रामपुर बुशहर का भाग है। 
घनेटी रियासत ----इस छोटी रियासत की स्थापना किरत सिंह के पुत्र सबीर चंद ने की अब यह शिमला जिले में है। 

कोटखाई रियासत ----इस रियासत की स्थापना अहिमल सिंह ने की थी। 

दरकोटी रियासत ---इसकी स्थापना जयपुर राजघराने के वंशज दुर्गा सिंह ने लगभग 13 वीं शताब्दी में की थी। 

ठियोग रियासत ---इस की नींव जयचंद ने लगभग 17 वीं शताब्दी में रखी अब यह शिमला जिले की एक तहसील है। 

मघान रियासत ----इसकी स्थापना भूपचन्द ने की थी। 

धुंड  रियासत ---इसकी स्थापना जनजान सिंह ने की थी अब यह ठियोग तहसील का भाग है। 

करांगला रियासत ----इसकी स्थापना संसार चंद ने की थी। जो कुमारसेन के संस्थापक का  वंशज था। 
शांगरी रियासत ---यह बुशहर रियासत का भाग था लेकिन कुलुत के राजा मानसिंह ने ऐसे बुशहर से छीन कर अलग रियासत बनाया। अब यह शिमला जिले का भाग है। 

रतेश रियासत ---इसकी नींव सिरमौर के राजा कर्मप्रकाश के भाई राय सिंह ने रखी।  

थरोच रियासत ---इसकी स्थापना किशन सिंह ने 15 वीं शताब्दी में की। यह टोंस नदी के किनारे पर स्थित है। चौपाल के साथ मिलने पर यह हिमाचल का अंग बन गई। इस रियासत की स्थापना किशन सिंह ने 15 वीं शताब्दी में की थी। 

डाडी  रियासत ----इस रियासत की स्थापना किशन सिंह ने 15 वीं शताब्दी में की। यह पब्बर के दायीं ओर स्थित है। स्वतंत्रता के बाद इसको जुब्बल तहसील में मिला दिया गया। 


जिला सिरमौर का इतिहास -----------
                                                  सिरमौर रयासत की नींव जैसलमेर के राजा के पुत्र शोमारावल 
(शुमश प्रकाश ) ने लगभग 1097 ई में रखी। सिरमौर की राजधानी राजबन कालसी ,रातेश ,नेहरी आदि स्थानों पर समय समय पर बदलती रही।  राजा कर्मप्रकाश ने 1621 ई में नाहन शहर की नींव रखी और इसे सिरमौर की राजधानी बनाया। राजा मेदनी प्रकाश 1678 -1694 ई इस समय सिखों के 10 वें गुरु गोविन्द सिंह सिरमौर में काफी समय तक रहे । महाराजा अमरप्रकाश ने 1911 से 1933 तक सिरमौर पर राज्य किया जिसे अंग्रेजों ने महाराजा की उपाधी दी और 13 तोपों की सलामी भी दी। अमर प्रकाश ने महिमा पुस्तकालय भी बनवाया। राजा राजेंद्र प्रकाश ने सन 1933 -1948 तक राज्य किया वह सिरमौर रियासत का  अंतिम शासक था जिसके बाद सिरमौर स्वतंत्र भारत का अंग बन गया। 

हमीरपुर जिले का  इतिहास ----

जिला हमीरपुर कभी भी स्वतंत्र ना रहा यह काँगड़ा रियासत के अधीन रहा। काँगड़ा के राजा हमीर चंद कटोच ने अपने शासन काल में एक किले का निर्माण करवाया जिससे इस स्थान का नाम हमीरपुर पड़ा 1849 ई में काँगड़ा पंजाब के अंतर्गत आ गया। प्रथम नवम्बर 1966 को हमीरपुर को काँगड़ा जिले की तहसील के रूप में हिमाचल में शामिल कर लिया गया और प्रथम सितम्बर 1972 को हमीरपुर एक पृथक जिले के रूप में अस्तित्व में आया। 

ऊना जिले का इतिहास ------
                                            ऊना जिला स्वतंत्र रियासत नहीं थी बल्कि यह काँगड़ा रियासत का भाग थी। ऊना जिला जसवां और कुठलहर रियासत से मिलकर बना है। 1966 में ऊना काँगड़ा जिलेकी तहसील बना। पहली सितम्बर 1972 को ऊना हिमाचल का पृथक जिला बन गया। 

बिलासपुर जिले का  इतिहास -----------
                                                  बिलासपुर या कहलूर रियासत की स्थापना बुंदेलखंड के राजा बीर सिंह ने 697 ई में की। वीर सिंह के पुत्र बीर चंद ने स्थानीय शासकों को हरा कर सतलुज नदी के बाएं किनारे पर कोट कहलूर रियासत की नींव रखी। बीर चंद ने 12 ठाकुराईयाँ भी जीती जिनमे प्रमुख थी --बाघल  ,कुनिहार ,बेजा ,धामी ,क्योंथल ,जुब्बल ,भागत  , बाजी ,मेलोंग , मंगल ,बलसन , कोढ़ड। बिलासपुर के प्रमुख राजा ---राजा मेघ चंद 1300 ई ,राजा राम चंद 1400 ई ,राजा ज्ञान चंद 1570 ई ,राजा दीप चंद 1650 ई ,राजा खड़क चंद 1824 ई ,राजा अमर चंद ,1833 ई ,राजा आनंद चंद 1931 ई आदि। सन 1954 को कहलूर रियासत का हिमाचल में विलय हो गया।  

कुल्लू जिले का  इतिहास ------


संस्कृत साहित्य में कल्लुत के नाम से प्रसिद्ध इस रियासत की स्थापना 360 ई में विहंगमणी पाल ने की थी।  इस रियासत की राजधानी जगतसुख थी। कुल्लू के मुख्य राजाओं का विवरण इस प्रकार है ----बहादुर सिंह ---1532 -1559 ई इसकी राजधानी मकरासा थी। जगतसिंह 1660 ई इसकी राजधानी सुल्तानपुर थी। जगतसिंह ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए अयोध्या से रघुनाथ की प्रतिमा को चुरा कर लाया। उसने भगवान रघुनाथ को कुल्लू का शासक घोषित कर दिया और स्वयं वजीर की तरह राज्य का कार्य भार देखने लगा। विधि सिंह 1672 -1688 ई ने कुल्लू रियासत का लाहौल तक विस्तार किया।
मानसिंह 1688 -1719 ई ने अपने विजय अभियान के अंतर्गत मंडी की नमक की खानों पर विजय प्राप्त की।
रणजीत सिंह 1810 ई ने कुल्लू से कर वसूल किया। 1963 ई में कुल्लू को जिले का दर्जा मिला। और 1966 में इसे हिमाचल में मिला  लिया गया। 1966 तक यह पंजाब के काँगड़ा का भाग था।


लाहौल स्पीति का संक्षिप्त इतिहास -----------

                      लाहौल पर समय समय पर अलग अलग शासकों का कब्जा रहा। 606 से 664 ई तक यहाँ पर हर्षवर्धन का कब्जा रहा। 730 से 775 तक यहाँ पर चम्बा के राजा का कब्जा रहा। 7 वीं सदी तक यहाँ पर सेन वंश वंश का  भी उल्लेख मिलता है। उसके बाद स्पीति बौद्ध धर्म समुदाय का गढ़ बन गया। 16  वीं  और 17 वीं शताब्दी में यहाँ पर कुल्लू और चम्बा के शासकों का कब्जा रहा। यहाँ के स्थानीय ठाकुर भी समय समय पर यहाँ पर शासन करते रहे। कुछ समय तक तिबत और लद्दाख का भी यहाँ पर शासन रहा।   1960 तक यह कुल्लू की  एक तहसील थी ।  1960 में लाहौल को पंजाब ने जिले का दर्जा दिया और 1966 में यह हिमाचल में मिला लिया गया।


किनौर जिले का संक्षिप्त  इतिहास ---------

                                                 किनौर को किन्नरों का निवास स्थान माना  गया है। 7 वीं  से 10 वीं  सदी में तिब्बत के महाराजा गुगे का शासन किनौर तक फैला था। जिसके कारण यहाँ बौद्ध धर्म का काफी प्रसार हुआ। 12 वीं शताब्दी के अंत में यहाँ तिब्बत साम्राज्य का अंत हुआ और स्थानीय ठाकुराईयाँ अस्तित्व में आई। इन ठाकुरों ने अपनी सुरक्षा के लिए लबरांग ,मोरांग और कमरू के किले बनाए थे।  किनौर अधिकतर बुशैहर रियासत के अधीन रहा। बाद में गोरखों ने 1803 -1815 ई तक पूरी बुशैहर रियासत पर कब्जा कर लिया था। पर वे किनौर पर पूरी तरह कब्जा करने में असफल रहे। गोरखों को हरा कर अंग्रेजों ने किनौर पर अधिकार कर लिया और किनौर के साथ पूरी बुशैहर रियासत भी अंग्रेजों के कब्जे में आ गई। 1948 में किनौर महासु का अंग बन गया। पहली मई 1960 को किनौर एक स्वतंत्र जिले के रूप में अस्तित्व में आया।  


मंडी जिले का इतिहास ---------

                                               मंडी जिला सुकेत और मंडी रियासतों से मिलकर बना है। सुकेत रियासत की स्थापना बंगाल के सेन साम्राज्य के राजा वीर सेन ने लगभग 770 ई  में की थी। रानी का कोट को सेवंत सेन ने 12 वीं शताब्दी में बनाया था । सुकेत का पुराना नाम पुराना नगर था। राजा बिक्रमसेन के समय  सुकेत की राजधानी सुंदरनगर थी। 1820 ई में मूरक्राफ्ट ने कुल्लू जाते समय  सुकेत की यात्रा की थी।  सुकेत रियासत का अंतिम शासक लक्ष्मण सेन था।   इस रियासत पर मुगलों ,गोरखों सिखों ,और अंग्रेजों का कब्ज़ा रहा। मंडी रियासत की नींव बाहू सेन ने 1200 ई में रखी। बाहू सेन का शाहू सेन से झगड़ा हो गया और बाहू सेन ने सुकेत से अलग होकर मंडी रियासत की स्थापना की। बाद में अजबर सेन ने 1527 में मंडी नगर की स्थापना की। मंडी के फेमस राजाओं में श्यामसेन ,गौर सेन ,सिद्ध सेन ,शमशेर सेन ,बलबीर सेन ,ईश्वर सेन ,जालम सेन और विजय सेन थे।कमलगढ़ के किले का निर्माण सूरजसेन ने करवाया था 1625 ई  में। 1678 ई में राजा सिद्ध सेन ने त्रिलोकनाथ का मंदिर बनवाया था। 1685 में गुरु गोविन्द सिंह मंडी आये थे। 1779 को इश्वरी सेन को काँगड़ा के राजा संसार चंद ने 12 सालों के लिए काँगड़ा के नदोन में बंदी बना के रखा। 1871 में लॉर्ड मायो जो इंडिया का वायसराय था वह मंडी आया था। 1899 में लॉर्ड एल्गिन मंडी आया था। मंडी रियासत का अंतिम राजा जोगिन्दर सेन था। 15  अप्रैल 1948 को मंडी और सुकेत रियासतों को मिलकर हिमाचल में मिलाया गया। 


सोलन जिले का इतिहास --------

                                                1948 में सोलन महासू जिले का भाग था। 1972 में सोलन को अलग जिला बनाया गया था। सोलन जिला कई छोटी छोटी रियासतों और ठाकुराइयों से मिलकर बना है। जो इस प्रकार से है

---भादल रियासत --इस रियासत की नीव राजकुमार अजय देव ने 13 वीं शताब्दी में रखी।
कुनिहार रियासत ---इसकी स्थापना जम्मू के निवासी अमोज देव ने 1154 ई में की और हाटकोटी अपनी राजधानी बनाया। 

बघाट रियासत ---इसकी स्थापना बसंतपाल ने 13 वीं सदी में की इसकी राजधानी बसंतपुर (बस्सी ) थी यह रियासत सोलन से सबाथू और कसौली तक फैली थी। 

कुठाड़ रियासत ---इसकी नींव सुरतचंद ने रखी यह रियासत सपाटू के निकट फैली थी। छोटी रियासत होने के कारण इस पर क्योंथल ,बिलासपुर और नालागढ़ का अधिकार था। 

महलोग रियासत --इसकी स्थापना हरिचन्द्र ने 12 वीं सदी में की जिसने  पटा को अपनी राजधानी बनाया था। यह रियासत कुठाड़ और नालागढ़ की बीच फैली थी। अब यह रियासत कसौली का भाग है। 

हिंदूर रियासत -----अजय चंद ने 1100 ई में हिन्दूर (नालागढ़ ) की स्थापना की। आलम चंद ने मंगोल शासक  तैमूर लंग का भब्य स्वागत किया और तैमूर हिन्दूर को विना नुकसान पहुँचाए आगे बढ़ गया।  इस रियासत को 1948 में पंजाब में मिलाया गया और बाद में 1966 में इसे सोलन में मिलाया गया। 



































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