चम्बा जिले का संक्षिप्त इतिहास ----brief History of Chamba District and other useful knowledge of Chamba HP (Funlearning89)
चम्बा जिले का संक्षिप्त इतिहास ----
Funlearning89 |
चम्बा रियासत की नींव राजा मेरु ने 550 ईस्वी में रखी और भरमौर कसबे को अपनी राजधानी बनाया।
साहिल वर्मन का समय 920 ईस्वी से 940 ईस्वी तक था। साहिल वर्मन ने 930 ईस्वी में राजकुमारी चम्पावती के नाम पर रावी नदी के किनारे चंपा नगर की स्थापना की जो बाद में चम्बा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। साहिल वर्मन ने इसे अपनी राजधानी बनाया।साहिल वर्मन का समय 920 ईस्वी से 940 ईस्वी तक था। साहिल वर्मन ने 930 ईस्वी में राजकुमारी चम्पावती के नाम पर रावी नदी के किनारे चंपा नगर की स्थापना की जो बाद में चम्बा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। साहिल वर्मन ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
साहिल वर्मन का समय 920 ईस्वी से 940 ईस्वी तक था। साहिल वर्मन ने 930 ईस्वी में राजकुमारी चम्पावती के नाम पर रावी नदी के किनारे चंपा नगर की स्थापना की जो बाद में चम्बा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। साहिल वर्मन ने इसे अपनी राजधानी बनाया।साहिल वर्मन का समय 920 ईस्वी से 940 ईस्वी तक था। साहिल वर्मन ने 930 ईस्वी में राजकुमारी चम्पावती के नाम पर रावी नदी के किनारे चंपा नगर की स्थापना की जो बाद में चम्बा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। साहिल वर्मन ने इसे अपनी राजधानी बनाया।
चम्बा नगर में पानी की आपूर्ति के लिए रानी नैना देवी ने अपनी बलि दी थी। नैना देवी की याद में आज भी चम्बा में सुही मेला लगता है। जिसमे मुख्य रूप से महिलाएँ और बच्चे मनाते है। साहिल वर्मन के शासन काल में चाकली के नाम से प्रसिद्ध तांबे के सिक्के का चलन था।
गणेश वर्मन के पुत्र प्रताप वर्मन ने अपने नाम के आगे सिंह उपनाम जोड़ा और उसके बाद चम्बा के सभी राजा अपने नाम के साथ सिंह वर्मन लगाने लगे। प्रताप सिंह वर्मन के कार्यकाल में मुगल सम्राट अकबर का चम्बा पर अधिकार हो गया।
बलभद्रसिंह वर्मन ने अपने शासनकाल में लक्ष्मी नारायण मंदिर को अत्यधिक दान दिया जिससे राजकोष लगभग समापत हो गया जिसके कारण उसके पुत्र जनार्दन ने उसको गद्दी से उतार दिया और स्वयं राजा बन गया। जनार्दन के राज्य संभालते ही उसका नूरपुर के राजा सूरजमल के साथ युद्ध आरम्भ हो गया। जो 12 बर्षों तक चला।
सूरजमल के भाई जगत सिंह ने 1623 ईस्वी में चम्बा के शाही महल में जनार्दन की हत्या कर डाली। जनार्दन की मृत्यु के समय उसकी पत्नी गर्भवती थी। राजा जगत सिंह की आज्ञा के अनुसार रानी के बालक की हत्या होना तय हुआ पर रानी ने बालक के जन्म होते ही उसे मंडी पहुंचा दिया। बाद में मुगल सरकार ने पृथ्वी सिंह को चम्बा का शासक माना। और वर्मन उपनाम भी शासकों ने अपने नाम से हटा दिया। 1660 से 1670 ईस्वी तक लाहौल ,चंद्र भागा घाटी और लदाख पर चम्बा का अधिकार रहा।
1809 ईस्वी में रणजीत सिंह ने चम्बा पर अपना अधिकार जमा लिया। श्री सिंह ने 1844 ईस्वी में चम्बा का राज्य संभाला। 1846 ईस्वी में चम्बा पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। अंग्रेजों ने 1848 ईस्वी में चम्बा रियासत श्री सिह को दुबारा सौंप दी। इसके बदले में श्री सिंह ने 12 हजार अंग्रेजों को देना तय किया। राज्य की आर्थिक बदहाली को ठीक करने लिए पंजाब सरकार के अफसर मेजर बलेडर रेड 1 जनवरी 1863 को चम्बा आये। उन्होंने कुछ सुधार कार्यक्रमों से चम्बा राजकीय अर्थब्यवस्था ठीक किया।
गोपाल सिंह ने 1873 में फिर से राज्य के आर्थिक हालात खराब कर दिए। भूरि सिंह 1904 -1919 ईस्वी को अंग्रेजी सरकार ने उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित किया और 1908 में भूरि सिंह म्यूजियम की स्थापना की।
राजा लक्ष्मण सिंह 1935 से 1948 के कार्यकाल में सन 1948 में चम्बा हिमाचल में शामिल किया गया था ।
चम्बा में झीलें ---
घड़ासरू झील,खजियार झील,लामा डल झील,मणिमहेश झील,चमेरा झील,महाकाली झील।
खजियार झील------
इस झील को खज्जिनाग के लिए पवित्र माना जाता है खजिनाग के नाम पर इस जगह का नाम खजियार रखा गया। खजियार में कोमल हरी घास के आसपास कालाटोप अभयारण्य का घना जंगल है। यह 1.5 किमी लंबा और 1 किमी चौड़ा है। यह देवदार के जंगल से घिरा हुआ है। यह एक जादुई स्वर्ग की तरह है। यहाँ खज्जिनाग को समर्पित एक मंदिर भी है । खजियार को "मिनी स्विट्जरलैंड" भी कहा जाता है। झील सभी मौसमों में पानी से भरी रहती है और जीवित रहने के लिए बारिश के पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
खजियार जिला चंबा में है यह डलहौजी से 16 किलोमीटर और चंबा से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है।
कैलाश मणिमहेश झील------ यह 4,170 मीटर की ऊंचाई पर है। मणि-महेश भरमौर से 28 किलोमीटर है। इस झील को देवी काली का आशीर्वाद और भगवान शिव द्वारा संरक्षित माना जाता है। जन्माष्टमी के त्योहार के बाद, पंद्रहवें दिन, हजारों श्रद्धालु इसके पवित्र जल में स्नान करने के लिए यात्रा करते हैं। इस झील में हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में मेला लगता है। यह चंबा का प्रसिद्ध मेला है इस मेले में लोग दूर -दूर से आते हैं । यह झील भरमौर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है।
चंबा के प्रसिद्ध स्थान----famous places in Chamba (HP)------
सरदार अजीत सिंह स्मारक ------- यह स्मारक पंचपुला (चम्बा) में हैं।
चंबा चर्च--------- चंबा बाजार में स्थित है । चम्बा चर्च को राजा शाम सिंह ने बनवाया था और चंबा में ईसाई समुदाय के उपयोग के लिए स्कॉटलैंड मिशन के चर्च को उपहार में दिया गया था। इसकी आधारशिला 17 फरवरी 1899 ईस्वी को रखी गई थी और इसका कार्य 1905 में समाप्त हुआ था।
चंबा लाइब्रेरी--------- चंबा के सरकारी कॉलेज के अंदर पुरानी चंबा लाइब्रेरी है। आप यहाँ हिमाचल प्रदेश के लगभग हर विषय पर किताबें पा सकते हैं, अर्थात् हिमाचल का इतिहास, भूगोल, राज्य, प्राचीन कला और संस्कृति की व्याख्या करने वाली पुस्तकें, प्राचीन सिक्के, कवच आदि की तस्वीरें।
चम्बा चौगान----- यह एक सार्वजनिक सैर करने की जगह है जहाँ एक घास का मैदान है । प्रत्येक वर्ष चौगान में मिंजर मेला लगता है। यह मेला एक सप्ताह तक चलता है और लोग मिंजर जुलूस में शामिल होते हैं। और लोग चौगान में स्थानीय रीति-रिवाजों और रंग-बिरंगे परिधानों में मेले में शामिल होते हैं, जहां बड़ी संख्या में खेल और सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं। मेले के समापन पर "मिंजरों" को रावी नदी में विसर्जित किया जाता है।
चंबा टाउन-------- रावी नदी के तट पर स्थित टाउनशिप एक इतालवी गाँव के किले जैसा दिखता है। चंबा का मौसम हमेशा सुहावना होता है, न ज्यादा ठंडा और न ज्यादा गर्म। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1006 मीटर है। सर्दियों के दौरान बर्फबारी चंबा शहर की सुंदरता को और बढ़ाता है। चंबा के लोग बहुत मददगार और ईमानदार हैं। चंबा टाउन आस - पास और दूर के कई गाँवों का मुख्य बाज़ार है।
चम्बा के मंदिर -----
चम्बा के मंदिर -----
---- चंबा में स्थानीय पहाड़ी वास्तुकला की शैली में कई प्राचीन मंदिर हैं, साथ ही शिखर मंदिर भी हैं। इन मंदिरों में अधिकांश भगवान शिव और विष्णु को समर्पित हैं, जो 8 वीं और 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच की अवधि में बनाए गए हैं। 'चतुर्मुखी' की छवि वाला हरि राय मंदिर एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। ।
चंबा के कुछ अन्य महत्वपूर्ण मंदिर चामुंडा देवीमंदिर , श्री बजरेश्वरी मंदिर और बंसी गोपाल मंदिर हैं। रानी सुही की स्मृति में एक तीर्थस्थल भी है जिसके पीछे एक किंवदंती है कि रानी ने अपना बलिदान दिया था ताकि चम्बा को पानी मिल सके।
शक्ति देवी मंदिर ----यह चम्बा के छतराड़ी में है। यह मंदिर मेरु वर्मन ने गुगा से बनवाया था।
लक्ष्मी नारायण मंदिर------ यह मंदिर 6 मंदिरों का समूह है। लक्ष्मी नारायण मंदिर जो चंबा शहर का मुख्य मंदिर है जो 10 वीं शताब्दी में साहिल वर्मन द्वारा बनाया गया था। मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है। मंदिर में बिमना यानि शिखर और गर्भगृह एक छोटे से सुरंगे के साथ हैं। लक्ष्मी नारायण मंदिर में संरचना की तरह एक मंडप भी है। मंदिर के ऊपर लकड़ी की छड़ें, खोल छत है। परिसर के भीतर कई अन्य मंदिर भी हैं। राधा कृष्ण का मंदिर, चंद्रगुप्त का शिव मंदिर और गौरी शंकर मंदिर इनमें से एक हैं।
चामुंडा देवी मंदिर-------यह मंदिर शाह मदार पहाड़ी के तट पर स्थित है, जो शहर के दक्षिण पूर्व में स्थित है। मंदिर एक उभरे हुए मंच पर खड़ा है। इस मंदिर की छत खंभे और छत पर कलात्मक नक्काशी है। मुख्य मंदिर के पीछे शिखर शैली में भगवान शिव का एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर के सामने एक और मंच है जहाँ दो बहुत पुराने पीपल के पेड़ आगंतुकों को आश्रय प्रदान करते हैं। इस मंच से चौगान, सर्किट हाउस सहित शहर के अधिकांश भू-चिह्नों का एक मनमोहक नजारा दिखता है। आज कल इस मंदिर की देखभाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की जा रही है।
सुई माता मंदिर------------एक पौराणिक कथा के अनुसार, चंबा शहर में पानी की सुविधाजनक आपूर्ति नहीं थी। और इसलिए राजा ने सरोहा पानी की धारा से पानी लाना चाहा , लेकिन किसी तरह पानी ने इसके लिए बने चैनल में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। इसे अलौकिक कारणों से जाना गया था। संन्यासी ने सलाह दी कि पानी की धारा को शांत किया जाना चाहिए जिसके लिए रानी या उसके बेटे में से एक की बलि देनी होगी । 'नैना देवी' रानी खुद बलिदान करने के लिए तैयार हो गई। अपने मायके से पहुंची और 'सती' की तरह नंगी होकर रानी को 'बालोता' नामक गाँव के पास ले जाया गया, जहाँ रानी को जिंदा दफनाया गया था। किंवदंती यह भी है कि जब कब्र को भर दिया गया था, तो पानी बहना शुरू हो गया था और तब से बह रहा है। उसकी स्मृति में राजा द्वारा एक शिखर पर मंदिर का निर्माण किया गया था। उनकी स्मृति में 15 वें चैत से लेकर वैशाख तक 'सुही मेला' भी आयोजित किया जाता है, जहाँ केवल महिलाओं और बच्चों को भाग लेने की अनुमति होती है।
भरमौर--------- भरमौर चंबा राज्य की मूल राजधानी थी। इसमें कई प्राचीन मंदिर और स्मारक हैं जो इसकी भव्यता को दर्शाते हैं। कुछ महत्वपूर्ण मंदिर इस प्रकार से हैं --------- मणिमहेश, लक्षना देवी, गणेश और नर सिंह। यह क्षेत्र सेमी-खानाबदोश चरवाहों, गद्दी का घर भी है। इसे ब्रह्मपुरा कहा जाता है, फिर भी अपने 84 प्राचीन मंदिरों और अपने एक समय के गौरव के स्मारकों को बरकरार रखता है, जिनमें से कुछ 7 वीं शताब्दी के हैं
मणिमहेश मंदिर ---यह भगवान् शिव को समर्पित है। इस का निर्माण मेरु वर्मन ने करवाया था।
गणेश मंदिर -----यह मंदिर मेरु वर्मन द्वारा बनवाया गया था।
नरसिंह मंदिर ----यह भरमौर में है। यह मंदिर भगवान् नरसिंह को समर्पित है। यह मंदिर त्रिभुवन देवी द्वारा बनवाया गया था।
लक्षणा देवी मंदिर----यह भरमौर में है। यह मंदिर महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर मेरु वर्मन द्वारा बनाया गया था। इस मंदिर की मूर्ति अष्टधातु की बनी है।
मणिमहेश मंदिर ---यह भगवान् शिव को समर्पित है। इस का निर्माण मेरु वर्मन ने करवाया था।
गणेश मंदिर -----यह मंदिर मेरु वर्मन द्वारा बनवाया गया था।
नरसिंह मंदिर ----यह भरमौर में है। यह मंदिर भगवान् नरसिंह को समर्पित है। यह मंदिर त्रिभुवन देवी द्वारा बनवाया गया था।
चौरासी मंदिर------- मुख्य परिसर में लक्षना देवी, गणेश, मणिमहेश और नरसिंह के मंदिर हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, 84 योगी राजा साहिल वर्मन के राज्य के दौरान भरमौर आए थे। राजा की मानवता और आतिथ्य से प्रसन्न होकर, योगियों ने राजा को दस बेटों और एक बेटी चंपावती के साथ आशीर्वाद दिया।
चम्बा की अन्य जानकारी ---
भरमौर ---का पुराना नाम ब्रह्मपुर था। यह चंबा जिले में है।
नाड़ा महल ---का निर्माण उमेद सिंह ने किया था। यह महल राजनगर में है जो की चंबा में है।
रंगमहल ---यह महल चम्बा में है। इस महल का निर्माण उमेद सिंह ने किया था।
जोतें और दर्रे --------
भीम घसूतड़ी जोत काँगड़ा और चम्बा को जोड़ता है
दुग्गी जोत भरमौर और लाहौल को जोड़ती है
चौबिया दर्रा लाहौल और भरमौर को जोड़ता है।
बसोदन दर्रा चम्बा और भटियात को जोड़ता है।
दराटी दर्रा चम्बा और पांगी को जोड़ता है।
साचा दर्रा चम्बा और पांगी को जोड़ता है।
इंद्रहार दर्रा काँगड़ा और भरमौर को जोड़ता है।
चम्बा की घाटियां ----
पांगी घाटी -----चम्बा में है
रावी घाटी ----चम्बा में है।
चम्बा को दूध और शहद की घाटी के नाम से भी जाना जाता है।
A book "Mukalsar Twareekh -E-Riyasat Chamba" written by Garib Khan.
चम्बा रावी नदी के दांए किनारे पर स्थित है।
चम्बा में किसानों का बिद्रोह -----------1898 में किसानों ने लगान व बेगार के विरुद्ध राजा शाम सिह के विरुद्ध किसानों ने विद्रोह किया था ।
चम्बा के फेमस मेले -----
मणिमहेश मेला ---यह मेला झील किनारे लगता है। हजारों श्रद्धालु इसके पवित्र जल में स्नान करने के लिए यात्रा करते हैं। इस झील में हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में मेला लगता है। यह चंबा का प्रसिद्ध मेला है इस मेले में लोग दूर -दूर से आते हैं । यह झील भरमौर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है।
मिंजर मेला --
-इस की शुरुआत साहिल वर्मन ने की यह मेला सावन महीने के दूसरे रविवार को लगता है। इस मेले में वरुण देव की पूजा की जाती है।
सूई मेला ---यह केवल महिलाओं और बच्चों के लिए होता है। यह रानी नैना देवी के बलिदान की याद में मनाया जाता है। यह चम्बा में लगता है। यह 11 से 13 अप्रैल को लगता है।
भरमौर जात्रा मेला ----यह मेला यह मेला कृष्ण जन्माष्टमी के दिन से शरू होता है। यह मेला 6 दिन तक लगता है। यह मेला शिव को समर्पित है।यह मेला हर साल अगस्त महीने में चम्बा में लगता है।
फूल मेला ------यह चम्बा के पांगी में अक्टूबर में लगता है।
चंबा ---के लोक नृत्य ----डांगी तथा डेपक और फूल यात्रा नृत्य ।
खनिज पदार्थ ----मैगनेसाइट----भरमौर तालुक से मिलता है। सुई नामक स्थान में भी मैगनेसाइट के भण्डार मेले है।
पंगवाल----यह जनजाति चम्बा के पांगी क्षेत्र में निवास करते है। ये लोग खेती करते है। पंगवाल जनजाति के लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी है।
गद्दी-----यह जनजाति हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी जनजाति है। गद्दी जनजाति के लोग चम्बा और काँगड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते है। गद्दी जनजाति के लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी है।
पर्वत शिखर --------
बड़ा खंडा पर्वत शिखर --- भरमौर (चंबा ) में है इसकी ऊंचाई 5860 मीटर है। पीरपंजाल पर्वत शिखर --- यह चंबा जिले में है इसकी ऊंचाई 5792 मीटर है।
पारंगला पर्वत शिखर ----यह चंबा में है इसकी ऊंचाई 5579 मीटर है।
मणि महेश कैलाश पर्वत शिखर ------यह चंबा जिले में है 5575 मीटर है।
उमाशिला पर्वत शिखर ---यह चम्बा में है इसकी ऊंचाई 5294 मीटर है।
गौरीदेवी का टिब्बा पर्वत शिखर ------यह चंबा में है इसकी ऊंचाई 4030 मीटर है।
नरसिंह टिब्बा पर्वत शिखर -----यह चंबा में है। इसकी ऊंचाई 3730 मीटर है।
धनछो झरना ---यह चम्बा जिले के भरमौर में है।
सतधारा झरना ---यह चम्बा जिले के पंजपुला में स्थित है।
Comments
Post a Comment