हिमाचल में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम - व जन आंदोलन History of Himachal Pradesh
हिमाचल में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम - व जन आंदोलन ---
* 1857 का स्वतंत्रता संग्राम-------------
- 1857 का सैन्य बिद्रोह मेरठ से शुरू हुआ। 13 मई 18 57 तक सैन्य बिद्रोह की सूचना शिमला तक पहुँच गई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की गूंज हिमाचल प्रदेश में भी उठने लगी। कसौली के 80 सैनिकों ने बिद्रोह कर दिया और बाद में शिमला के जतोग में स्थित नसीरी बटालियन के सैनिको ने भी बिद्रोह कर दिया। सैनिको ने कसौली में स्थित खजाना लूट लिया। डिप्टीकिशनर विलियम हे ने मंडी के राजा के माध्यम से विद्रोहियों को समझा कर शांत करने का प्रयास किया पर उसे सफलता ना मिली। शिमला से अंग्रेज चुपचाप पहाड़ी राज्यों में चले गए शिमला खाली हो गया। पहाड़ी राजा अंग्रेजों के प्रति बफादार थे उन्होंने अंग्रेजों के घरों को सुरक्षा प्रदान की। सूबेदार भीम सिंह ने क्रांतिकारी बिद्रोही सेना का नेतृत्व किया। अंग्रेजो ने गोरखों और राजपूत सैनिकों में फुट डलवा दी। सूबेदार भीम सिह को कैद कर लिया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। भीम सिह जेल से भाग कर रामपुर के राजा शमशेर सिह के यहाँ शरण ले ली। अंग्रेजो ने राजा शमशेर सिंह को देने वाला 15000 रूपये नजराना देना बंद कर दिया। बाद में भीमसिंह और उसके साथी प्रतापसिह को पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दी गई।
* बुशहर में दूम आंदोलन ----------------1859 में रामपुर बुशहर में दूम आंदोलन हुआ। लोगों ने नकदी लगान देने से माना कर दिया और बिद्रोह कर दिया। किसान राजा को फसल का 5 वां हिस्सा देते थे और पुरानी प्रथा के अनुसार घी , तेल , दूध ,ऊन ,बकरी आदि राजा को देते थे। किसान नकद लगान देने में असमर्थ थे इसलिए यह आंदोलन हुवा था। इसका केंद्र रोहड़ू था। लोग अपने परिवारों तथा पशु धन के साथ जंगलों में चले गए। फसलें बर्बाद हो गई। राज्य की आय का मुख्य स्त्रोत भूमि लगान थी जो बंद हो गई थी। ब्रिटिश अधिकारी जी सी बनर्स ने बुशहर के राजा शमशेर से बात करके लोगों की मागों को मान लिया था और यह आंदोलन शांत हो गया था।
* मंडी में जन आंदोलन -----1869 में मंडी के लोगों ने असहयोग आंदोलन कर दिया था।
मंडी की प्रजा बजीर गोसांऊ और पुरोहित शिव शंकर के भ्रषट और अत्याचारी स्वभाव से दुखी थी। मजबूर होकर अंग्रेजो को पुरोहित और उस के बेटे को रियासत से निकाल दिया और बजीर को 2000 रूपये जुर्माना किया गया। और आंदोलन शांत हुवा था।
* नालागढ़ आंदोलन-------------- 1877 में राजा ईश्वर सिह व् बजीर गुलाम कदीर k बिरुद्ध हुआ। लगान को बढ़ा दिया गया था गुलाम कदीर और राजा के द्वारा जो लोग देने में असमर्थ थे जगह -जगह जलूस निकलने लगे सभाए होने लगी अंग्रेजों ने पुलिस दल भेज कर लोगों को पीटा और कुछ को जेलों में भी डाला पर बाद में राजा बजीर गुलाम कादिर और अंग्रेजों को लोगों की शर्ते माननी पड़ी। बजीर गुलाम कादिर को रियासत से निकल दिया गया। लगान में कमी की गई और लोगों को जेलो से रिहा भी किया गया। इस तरह से यह आंदोलन शांत हुवा था।
* सिरमौर में भूमि आंदोलन------- 1878 में सिरमौर में हुआ। यह आंदोलन राजा शमशेर प्रकाश की भूमि बंदोबस्त ब्यवस्था के खिलाफ किया गया।
* झुगा आंदोलन -----------------
बिलासपुर में राजा अमरचंद के बिरोध में 1883 से 1888 तक हुआ। राजा के अत्याचारों के बिरोध में गेहड़वीं के ब्राह्मणों ने झुगियां जलाकर बिरोध किया और झुगियों में आग लगा दी और वे वहाँ से चले गये । इस से जनता भड़क गई और अंत में राजा को बेगार प्रथा खतम करनी पड़ी तथा प्रशाशनिक सुधार करने पड़े। और ब्राह्मणों को बापिस बुलाना पड़ा और उन्हें जमीन वापिस दे दी गई। तथा मरे हुवे विद्रोहियों की पत्नियों को विधवा पेंशन लगा दी गई। इस आंदोलन के प्रमुख नेता गुलाब राम नड्डा को 6 साल की सजा हुई और अन्य कई लोगों को सजा हुई थी।
* चम्बा के किसानों का बिद्रोह -----------1898 में किसानों ने लगान व बेगार के विरुद्ध में राजा शाम सिह के विरुद्ध किसानों ने विद्रोह किया।
* ठियोग में किसानों का आंदोलन------1898 में ठाकुरों के विरुद्ध किसानों का आंदोलन।
बिलासपुर में राजा अमरचंद के बिरोध में 1883 से 1888 तक हुआ। राजा के अत्याचारों के बिरोध में गेहड़वीं के ब्राह्मणों ने झुगियां जलाकर बिरोध किया और झुगियों में आग लगा दी और वे वहाँ से चले गये । इस से जनता भड़क गई और अंत में राजा को बेगार प्रथा खतम करनी पड़ी तथा प्रशाशनिक सुधार करने पड़े। और ब्राह्मणों को बापिस बुलाना पड़ा और उन्हें जमीन वापिस दे दी गई। तथा मरे हुवे विद्रोहियों की पत्नियों को विधवा पेंशन लगा दी गई। इस आंदोलन के प्रमुख नेता गुलाब राम नड्डा को 6 साल की सजा हुई और अन्य कई लोगों को सजा हुई थी।
* चम्बा के किसानों का बिद्रोह -----------1898 में किसानों ने लगान व बेगार के विरुद्ध में राजा शाम सिह के विरुद्ध किसानों ने विद्रोह किया।
* ठियोग में किसानों का आंदोलन------1898 में ठाकुरों के विरुद्ध किसानों का आंदोलन।
* मंडी जागरण -----1909 ई में 20000 लोगों ने मंडी में प्रदर्शन किया बजीर जीवानंद के खिलाफ और राजा को अंग्रेजो की सहायता से बजीर जीवानंद को हटाना पड़ा था। और आंदोलन शांत हो कर समाप्त हो गया।
* गदर पार्टी -----लाला हरदयाल ने जून 1914 ई को सेनफ्रांसिस्को (USA ) में गदर पार्टी की स्थापना की। मंडी के हरदेव भी गदर पार्टी के सदस्य बन गए जो बाद में स्वामी कृष्णा नंद के नाम से फेमस हुवे। हरदेव का दूसरा साथी था भाई हिरदा राम जिसे लाहौर षडयंत्र केस में फांसी दी गई। गदर पार्टी के अन्य सदस्य सुरजन तथा निधान सिह चुघा को नागचला डकैती के झूठे मुकदमे में फांसी दे दी गई।
* मंडी षडयंत्र -----------
1914 -15 ई में गदर पार्टी के नेतृत्व में हुआ। इस पार्टी के सदस्य अमेरिका से आकर मंडी और सुकेत में कार्यकर्त्ता भर्ती करने के लिए फैल गये मियां जवाहर सिंह और मंडी की रानी खैरगड़ी ने इस पार्टी की सहायता आर्थिक रूप से की। 1914-15 में आंदोलनकारियों ने एक योजना बनाई कि मंडी के अधीक्षक और बजीर की हत्या कर दी जाए और खजाने को लूट जाए ब्यास पर बने पल को उड़ा कर मंडी और सुकेत पर अधिकार कर लिया जाए पर ये नागचला डकैती के सिवाए और किसी योजना में सफल नही हुवे। इस आंदोलन को दबा दिया गया और रानी खैरगड़ी को देश निकाला दे दिया गया तथा धीरे धीरे सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। इनमे प्रमुख थे ----जवाहर नारायण , मियां जवाहरसिंह , बद्री सिधू आदि। * कुनिहार आंदोलन --------------------1920 में हुआ। राजा के बिरुद्ध आवाज उठाई गई। लोगों को कारावास में डाला गया। पर बाद में राणा हरदेव ने लोगों की माँगे मान ली। लगान में 25 % की कमी की गई , बंदी कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया गया , प्रजामंडल से प्रतिबंध हटा दिया गया , एक शाशक सुधार कमेटी बनाई गई। इस तरह से कुनिहार आंदोलन शांत हुवा था।
* कांग्रेस आंदोलन ------
1920 -23 ई में शिमला में कांग्रेस का आंदोलन जोर पकड़ने लगा इस आंदोलन के प्रमुख नेता --पण्डित गैन्डामल , मौलाना मुहमद नैनी ,अब्दुल पयनी , गुलाम मुहमद नबी , ठाकुर भागीरथ लाल तथा हकीम त्रिलोक नाथ थे। इन्होंने गांवों में सभाएं की और जलूस निकाले। 1927 ई में सुजानपुर ताल में आयोजित सभा में पुलिस ने लोगों की निर्मम पिटाई की। ठाकुर हाजरा सिंह , बाबा कांशीराम गोपालसिंह , और चतरसिंह को पीटा गया और उन की गाँधी टोपियां भी छीन ली गई। तभी पहाड़ी गाँधी बाबा कांशीराम ने सौगंध खाई की देश की आजादी तक वे काले कपड़े ही पहनेगे। साथियों के साथ इन्हें लंबी सजा हुई।
* बिलासपुर आंदोलन -------------------1930 में हुआ---भूमि बंदोबस्त अभियान चलाया गया बिलासपुर में इसमें 19 नेताओं को जेल हुई और जिन गांवों ने इस आंदोलन में भाग लिया था उन गांवों को सामूहिक 2500 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
* धामी गोली कांड ----
16 जुलाई 1939 में धामी गोली कांड हुआ था। 13 जुलाई 1939 ई को शिमला हिल स्टेट्स हिमाचल रियासती प्रजा मंडल के नेता भागमल सोठा की अध्यक्षता में में धामी रियासत के स्वयंसेवको की बैठक हुई इस बैठक में धामी प्रेम प्रचारिणी सभा पर लगाई गई पावंदी को हटाने का अनुरोध किया गया जिसे धामी के राणा ने मना कर दिया। 16 जुलाई 1939 में भागमल के नेतृत्व में लोग धामी के लिए रवाना हुए। भागमल सोठा को घणाटी में गिरफ्दार दर दिया। राणा ने हलोग चोक के पास इकठी जनता पर घबरा कर गोली चलाने की आज्ञा दे दी जिसमें 2 आदमी मारे गए व कई घायल गये। महात्मा गाँधी की आज्ञा पर नेहरू ने दुनीचंद वकील को इस घटना की जांच के लिए नियुक्त किया।
* व्यक्तिगत सत्याग्रह ----
1940 में गाँधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया। शिमला में इस सत्याग्रह में पण्डित पदमदेव , श्याम लाल खना , और महामंत्री शालिग्राम शर्मा आदि प्रमुख नेता थे। इन्होंने गंज में अनेक सभाएं की और भाषण दिए इन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और पदम देव को पकड़ कर कैथू जेल में डाला गया और बाद में 18 मास की सजा देकर उन्हें लुधियाना और गुजरात की जेलों में रखा गया। 1941 तक बहुत से नेता गिरफ्दार कर लिए गए थे। पर 4 दिसम्बर 1941 को गाँधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया और धीरे -धीरे सभी नेताओं को छोड़ दिया गया।
* पझौता आंदोलन -----------------
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के साथ सिरमौर में पझौता आंदोलन शरूहुआ। लोगों ने राजा के कर्मचारियों की घूसखोरी व तानाशाही के बिरोध में सशत्र आंदोलन किया। राजा की सेना के बिरुद्ध लोगो ने टोपीदार बन्दूको से और पत्थरों से 2 महीनों तक सेना का मुकाबला किया। इस आंदोलन के नेता बैद्य सूरत सिह , मियां चु चु , बस्ती राम पहाड़ी , चेतराम आदि थे। इन सबको सेना ने गिरफ्दार दर लिया और इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई।
* भारत छोड़ो आंदोलन ----
14 जुलाई 1942 को कांग्रेस की बैठक में बर्धा में गाँधी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव को पारित किया 7 -8 अगस्त को मुम्बई की बैठक में भारत छोड़ो आंदोलन को ब्यापक स्तर पर चलाने का निर्णय लिया गया गाँधी को नेतृत्व दिया गया। शिमला ,काँगड़ा और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भारत छोड़ो के संबंध में जलसे और जलूस निकाले गए और आंदोलन हुए इस आंदोलन में शिमला में भागमल सोठा को और पण्डित हरिराम आदि कई नेताओं को गिरफ्दार कर लिया गया और पंजाब की जेलों में बंद कर दिया गया। शिमला से राजकुमारी अमृतकौर भारत छोड़ो आंदोलन का संचालन करती रही। तथा गाँधी के जेल में बंद होने पर उनकी पत्रिका का सम्पादन करती रही। मई 1944 में महात्मा गाँधी को जेल से रिहा कर दिया गया और आंदोलन कुछ धीमा पड़ गया। सितम्बर 1944 में हिमाचल में भारत छोड़ो आंदोलन में गिरफतार नेताओं को रिहा कर दिया गया।
* वेवेल योजना -------
14 मई 1944 को लन्दन में भारत सचिव L.S. एमरी ने पार्लियामेंट में राजनीतिक हल के लिया एक योजना की घोषणा की ,जो बाद में वेवेल योजना के नाम से प्रसिद्ध हुई। बायसराय लार्ड वेवेल ने भारतीय राजनीतिक दलों को 25 जून 1945 को शिमला में बात चीत के लिए बुलाया गया। इसमें भाग लेने के लिए शिमला पहुँचे नेता वो थे ----कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद , जवाहरलाल नेहरू ,सरदार बल्लभ भाई पटेल , राजेन्द्र प्रसाद , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ,खान अब्दुल गफ्फार खान , आचार्य कृपलानी ,गोविन्द बलभ पन्त ,पटाभि सीतारमैया ,शंकरराव देव ,जयराम दास ,दौलतराम ,रविशंकर शुक्ला ,सुचेता कृपलानी ,सरोजिनी नायडू ,भुला भाई देसाई , आसफ अली ,अरुणा आसफ अली ,मीराबेन आदि कांग्रेस के नेता शिमला आये और सलाह के लिए महात्मा गाँधी भी शिमला आये थे।
* राज्य का गठन ----15 अप्रैल 1948 को 30 छोटी-बड़ी पहाड़ी रियासतों को मिला कर चीफ कमिशनर प्रोविंस का दर्जा दिया गया।
Comments
Post a Comment